देवताओं का अभिमान और परमेश्वर
कहानी
एक बार देवासुर संग्राम हुआ। उसमें भगवान् की कृपा से देवताओं को विजय मिली। परमेश्वर तथा शास्त्रकी मर्यादा भंग करनेवाले असुर हार गये। यद्यपि देवताओं की इस महान् विजयमें एकमात्र प्रभुकी कृपा एवं इच्छा ही कारण थी, तथापि देवता इसे समझ न पाये। उन्होंने सोचा, यह विजय हमारी है और यह सौभाग्य-सुयश केवल हमारे ही पराक्रमका परिणाम है। भगवान् को देवताओं के इस अभिप्राय को समझते देर न लगी । सम्पूर्ण दुर्गुणों की खान उनके इस अहंकार को दूर करनेके लिये वे एक अद्भुत यक्षके रूपमें उनके सामने प्रकट हुए।
देवता उनके इस अद्भुत रूपको कुछ समझ न सके और बड़े विस्मयमें पड़ गये। उन्होंने अग्निको उनका पता लगाने के लिये भेजा। अग्निके वहाँ पहुँचने पर यक्षरूप भगवान् ने उनसे प्रश्न किया कि 'आप कौन हैं ?' अग्निने कहा- 'तुम मुझे नहीं जानते ? मैं इस विश्वमें 'अग्नि' नामसे प्रसिद्ध जातवेदा हूँ।' यक्षरूप भगवान्ने पूछा-'ऐसे प्रसिद्ध तथा गुणसम्पन्न आपमें क्या शक्ति है?' इसपर अग्नि बोले कि 'मैं इस चराचर जगत्को जलाकर भस्म कर सकता हूँ।' इसपर (यक्षरूपमें) भगवान्ने उनके सामने एक तृण रख दिया और कहा- -'कृपाकर इसे जलाइये।' अग्निने बड़ी चेष्टा की, क्रोधसे स्वयं पैरसे चोटीतक प्रज्वलित हो उठे, पर वे उस तिनकेको न जला सके। अन्तमें वे निराश तथा लज्जित होकर लौट आये और देवताओंसे बोले कि 'मुझे इस यक्षका कुछ भी पता न लगा।'
तदनन्तर सबकी सम्मति से वायु उस यक्षके पास गये और भगवान्ने उनसे भी वैसे ही पूछा कि 'आप कौन हैं तथा आपमें क्या शक्ति है?' उन्होंने कहा कि ‘इस सारे विश्वमें वायु नामसे प्रसिद्ध में मातरिश्वा हूँ और मैं पृथ्वीके सारे पदार्थोंको उड़ा सकता हूँ।' इसपर भगवान्ने उसी तिनके की ओर इनका ध्यान आकृष्ट कराया और उसे उड़ाने को कहा। वायुदेवता ने अपनी सारी शक्ति लगा दी, पर वे उसे टस से मस न कर सके और अन्तमें लज्जित होकर देवताओंके पास लौट आये। जब देवताओं ने उनसे पूछा कि 'क्या कुछ पता लगा कि यह यक्ष कौन था ?' तब उन्होंने भी सीधा उत्तर दे दिया कि 'मैं तो बिलकुल न जान सका कि वह यक्ष कौन है ?'
अब अन्तमें देवताओंने इन्द्रसे कहा कि 'मघवन् ! आप पता लगायें कि यह यक्ष कौन है ?' 'बहुत अच्छा' कहकर इन्द्र उसके पास चले तो सही, पर वह यक्ष उनके वहाँ पहुँचनेके पूर्व ही अन्तर्धान हो गया । अन्तमें इन्द्रकी दृढ़ भक्ति एवं जिज्ञासा देखकर साक्षात् उमा- -मूर्तिमती ब्रह्मविद्या, भगवती पार्वती वहाँ आकाशमें प्रकट हुईं। इन्द्रने उनसे पूछा कि 'माँ! यह यक्ष कौन 'था ?' भगवती उमाने कहा कि 'वे यक्ष प्रसिद्ध परब्रह्म परमेश्वर थे। उनकी ही कृपा एवं लीलाशक्तिसे असुर पराजित हुए हैं, आपलोग तो केवल निमित्तमात्र रहे। आपलोग जो इसे अपनी विजय तथा शक्ति मान रहे हैं, वह आपका व्यामोह तथा ि अहंकारमात्र है। इसी मोहमयी विनाशकारी भ्रान्तिको दूर करनेके लिये परमेश्वरने आपके सामने यक्षरूपमें प्रकट होकर तथा कुतूहल प्रदर्शन कर आपलोगों के गर्वको भंग किया है। अब आपलोग अच्छी तरह समझ लें कि इस विश्वमें जो बड़े-बड़े पराक्रमियों का पराक्रम, बलवानोंका बल, विद्वानोंकी विद्या,
तपस्वियोंका तप, तेजस्वियोंका तेज एवं ओजस्वियोंका ओज है, वह सब उसी परम लीलामय प्रभुकी लीलामयी विविध शक्तियोंका अल्पांश मात्र है और इस विश्वके सम्पूर्ण हलचलोंके केन्द्र एकमात्र वे ही सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमेश्वर हैं। प्राणीका अपनी शक्तिका अहंकार मिथ्या भ्रममात्र है ।'
भगवती उमा के वचनों से इन्द्र की आँखें खुल गयीं। उन्हें अपनी भूल पर बड़ी लज्जा आयी। उन्होंने लौटकर सभी देवताओंको सम्पूर्ण रहस्य बतलाकर सुखी किया।
Story-devtao ka abhiman aur marmeshwar
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- केनोपनिषद्
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