पंचतंत्र की कहानियाँ
न कोई छोटा न बड़ा
किसी नगर में एक सेठ रहता था, जो गाँव का मुखिया भी था। वह समाजसेवी व अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था। उसे दुखियों एवं गरीबों से बड़ी हमदर्दी थी। यही कारण था कि वह राजा और जनता दोनों से सम्मान पाता था।
कुछ समय बीतने पर उसका विवाह हुआ। विवाह के अवसर पर उसने राजा को परिवार सहित घर बुलाकर भोज करवाया। उस अवसर पर आए हुए राजगृह की सफाई करने वाले गोरंभ नामक एक नौकर को अनुचित स्थान पर बैठने के कारण धक्का देकर निकाल दिया।
कई रातों तक बेचारा यही सोचता रहा कि मैं अपने अपमान का बदला से और राजा से कैसे चुकाऊँ। मुझे तो जितनी जल्दी हो सके उनसे बदला लेना होगा।
एक रात राजा पलंग पर लेटे हुए थे, नौकर गौरंभ वहाँ की सफाई कर रहा
था। मौका देखकर वह अपने आप बोलने लगा-"अरे उस दलित सेठ की यह
मजाल की वह रानी का आलिंगन करे।"
राजा, जो उस समय पलंग पर लेट हुआ था, गोरभ के मुंह से शब्द सुनकर उठकर बैठ गया और गोरंभ से पूछने लगा-" अरे गोरंभ! क्या जो कुछ तू कह रहा है, यह ठीक है ?"
'राजन्! वास्तव में बात यह है कि रात भर मैं ठीक से सो न सका। अब सफाई करते-करते मेरी आँख लग गई। मुझे नहीं पता कि नींद में मैं क्या कुछ कह गया।
राजा को यह पता था कि यह ही एक अकेला नौकर है जो खुलेआम महलों में आता जाता है। इसी प्रकार दलित भी आ जाता है। इसने जो रानी आलिंगन करने की बात कही हैं, यह किसी हद तक ठीक हो सकती है, झूठ नहीं। प्राणी दिन में जो देखता अथवा करता हैं, वही नींद में बड़बड़ाया करता है और जो भी अच्छी बुरी बात मनुष्य के दिल में रहती है, वहीं नींद या नशे की हालत में अपने आप ही बाहर आ जाती है और रह गई स्त्रियों की बात इनके दिल की गहराई में झांकना बड़ा कठिन है। लकड़ी से आग की नदियों से सागर की, पुरूष से स्त्रियों की, कभी वृद्धि नहीं होती। जो मूर्ख पुरूष यह समझता है कि यह मेरी स्त्री मुझसे प्रेम करती है, वह उसके फंदे में सदा पक्षी की भांति फंसा रहता है। औरतों की जो सेवा
पंचतंत्र की कहानियाँ
करता है और पास में रहता है, प्यार से बोलता है, उसी को वह चाहने लगती है। यही सब बातें सोचकर राजा शंका के सागर में डूब गया। वह उदास रहने लगा, यहाँ तक कि उसने राजदरबार के कामों में भी रूचि लेना छोड़ दिया। जब काफी समय तक राजा ने दलित सेठ की कोई खैर-खबर नहीं ली तो वह सोचने लगा-"मैंने आज तक इस राजा या इसके संबंधी का अपमान नहीं किया, फिर मुझसे इस प्रकार क्यों रूठा हुआ है ? न ही पहले की तरह मेरे पास आता है और न ही मुझे बुलवाता है। आखिर इसकी नाराजगी का कारण क्या है। चलकर से करें पाम जानना जाहिए। इस प्रकार दुखी होकर दलित सेठ एक दिन राजदरबार की ओर ओर चल पड़ा।"
द्वारपाल के पास खड़े दलित को देखकर गोरंभ हंसकर द्वारपाल से कहने लगा-" द्वारपाल जी | राजा जी के कृपा पात्र दलित जी आपके सामने खड़े है, यह बदला जिसे चाहे जेल भिजवा दें, जिसे चाहे भरी महफिल से धक्के देकर बाहर बदल से निकलवा दें, जरा इनसे बचकर रहना, कहीं आप भी न निकलवा दिये जाओ।"
गोरंभ के मुँह से यह शब्द सुनकर दलित ने सोचा कि कहीं यह सब काई का बदमाशी इसी गोरंभ की ही न हो। किसी ने ठीक ही कहा है-चाहे कोई मूर्ख और मेठ को छोटा ही क्यों न हो, वह यदि राजा की सेवा करता है तो वह छोटा होते हुए' भी बड़ा माना जाएगा, चाहे कोई बुजदिल क्यों न हो, यदि वह राजा का सेवक है तो उसे किसी से भी नीचा नहीं देखना पड़ता ।
दलित सब बात समझ गया था, मन-ही-मन पश्चाताप करते हुए वह वापस घर लौट आया, फिर उसने गोरंभ को अपने घर बुलाकर उसे कुछ वस्त्र और रूपये इनाम के रूप में देकर कहा-
"हे मित्र, मैंने उस दिन जानबूझकर धक्का दिया था, क्योंकि तुम ब्राह्मणों से पहले स्थान पर बैठ गए थे, इसीलिए मजबूर होकर मुझे ऐसा करना पड़ा, किन्तु फिर भी मैं आप से क्षमा चाहूंगा। आज से हम दोनों मित्र हैं, हममें कोई छोटा बड़ा नहीं है।"
गोरंभ इस बात से काफी खुश हुआ, क्योंकि विजय उसकी हुई थी। उसके जाने के पश्चात् दलित सोचने लगा-"तराजू की डंडी और दुष्ट की प्रवृति एक जैसी होती है, जरा देर से ऊपर हो जाती है जरा देर में नीचे चली जाती है।"
उधर गोरंभ दलित से धन, वस्त्र प्यार पाकर खुशी से फूला न समा रहा था, अब अपनी भूल पर रोना आ रहा था। उसने निर्णय कर लिया था कि मैं अब इन दोनों मित्रों के बीच से नफरत की दीवार गिरा दूंगा।पंचतंत्र की कहानियाँ
बस फिर क्या था। दूसरी सुबह जैसे ही गोरंभ राजा के महल में लगाने गया तो अपने आप ही कहने लगा-" वाह रे राजा की मूर्खता, जो मल त्याग करते समय ककड़ी खाता है।" झाड़ू
राजा ने जैसे ही यह शब्द सुने तो हैरानी से उठते हुए अपने नौकर की ओर
देखकर बोले-"अरे ओ, तू यह क्या बक रहा है? क्या मुझे कभी भी ऐसा करते देखा है ?"
गोरंभ ने हाथ जोड़ते हुए कहा- "महाराज, मैं रात भर भजन-कीर्तन करता रहा था, बस झाडू लगाते-लगाते आँख लग गई। नींद में न जाने क्या कुछ बक गया, मुझे क्षमा कर दो।"
राजा गोरंभ की बात सुनकर, उस दिन की भी बात सोचने लगा, क्योंकि उसे पता था कि मैंने तो आज तक कभी ककड़ी खाई ही नहीं तो फिर इसने कैसे यह बात कह दी। इसी प्रकार इसने नींद में वही रानी वाली झूठी बात कही होगी। राजा सारी बात समझ गया, वह अपनी भूल पर पश्चाताप करने लगा। उसके सारे बहम दूर हो गये थे। उसने दूसरे ही दिन दलित को अपने पास बुलाकर उसे प्यार से अपने गले लगा लिया। इस प्रकार दोनों मित्र फिर से मिल गए थे।
"हे मित्र! दमनक ने बैल से कहा- "इसीलिए कहता हूँ कि कभी छोटा
बड़ा मत करना। " दमनक की बात सुनकर बैल बोला- "ठीक है मित्र, जैसा तुम कहोगो, मैं वैसा ही करूंगा।"
तब दमनक उसे लेकर शेर के पास आ गया।
"देखो महाराज! यह संजीवन है। मैं इसे आपके पास ले आया हूँ, इससे अधिक मेरी वफादारी का सबूत और क्या हो सकता है।" संजीवन (बैल) बड़े आदर से शेर को प्रणाम करके उसके निकट जाकर
बैठ गया। पिंगलक ने भी उसे प्यार से उत्तर दिया फिर पूछा- " अरे भाई! तुम इस वन में कैसे आ गए ?"
बैल बेचारा सीधा-सादा था, उसने आरंभ से लेकर अब तक की सारी कहानी शेर को सुना दी कि उसके मालिक ने उसे किस प्रकार धक्का देकर इस जंगल में छोड़ दिया था।
संजीवन की सारी कहानी सुनकर शेर को उसके साथ बड़ी हमदर्दी हो गई, उसने कहा- "देखो मित्र, तुम आज से मेरे साथी ही नहीं भाई हो। आज से तुम अकेले नही बल्कि मेरे साथ ही रहोगे, क्योंकि यह जंगल मांस खोर जानवरों के19
पंचतंत्र की कहानियाँ
लिए भी सुरक्षित नहीं, तुम तो फिर भी शाकाहारी जीव हो।"
बैल अपने नये मित्रों को पाकर अत्यंत खुश हुआ। सबसे अधिक खुशी की बात तो यह थी कि जंगल का राजा शेर के साथ उसकी दोस्ती हो गई थी। अब तो चिंता मुक्त हो जंगल में रहने लगा।
उसे सबसे अधिक प्यार करटक और दमनक से था क्योंकि इन दोनों के कारण ही तो वह शेर तक पहुँचा था। यही कारण था कि इन चारों की मित्रता दिन-प्रतिदिन बढती जा रही थी। और जानवरों से दूर रहकर ये चारों मित्र घण्टों तक आपस में बाते करते रहते।
दूसरी ओर शेर ने भी धीरे-धीरे बैल से इतना प्यार बढ़ा लिया था कि उसे एक मिनट के लिए उस संजवीन से दूर रहना कठिन होने लगा किन्तु शेर और बैल की मित्रता करटक और दमनक के लिए भारी पड़ने लगी थी। वे दोनों नहीं चाहते थे कि उनका मित्र बैल हर समय शेर के साथ घूमता रहे। आखिर सबसे पहले तो वह उनका ही मित्र था फिर वे दोनो राजा के बिना भी तो जंगल में शिकार को नहीं जा सकते थे। कहा गया है कि
यदि अच्छा और प्रभावशाली राजा भी फलहीन हो, तो लोग उसे छोड़कर कभी उसी प्रकार दूसरी जगह चले जाते हैं जिस प्रकार सूखे वृक्ष के पंछी उसे छोड़कर चले जाते हैं।
तब मालिक की दया से बंचित, भूख और प्यास से व्याकुल वे दोनों करटक और दमनक, आपस में बैठकर सलाह करने लगे।
एक दिन दमनक ने करटक से कहा, "भाई अब यह शेर और बैल की दोस्ती में सब कुछ भूल गया है। धीरे-धीरे इसके सभी साथी इसे छोड़कर चले गए हैं, आखिर कब तक कोई भूखा मरेंगा ? जब राजा को प्रजा का ख्याल न हो तो प्रजा भी कहाँ तक साथ देगी ? अब तो हमें ही सोचना पड़ेगा कि हम क्या करें ?"
" भाई यदि हमारा मालिक हमारा कहना नहीं मानता तो हमें उससे कहना. ही चाहिए ताकि लोग हमें दोषी न कहें। ऐसा कहा गया है-राजा चाहे न सुनता की सी हो तो भी उसे मंत्रियों द्वारा समझाना चाहिए, जैसा कि अपने दोष से बचने के लिए विदुर ने अम्बिका पुत्र धृतराष्ट्र को समझाया था।"
और शाकाहारी बैल को जो तुम मालिक के पास ले गए हो तो तुमने अपने हाथों से अपना बुरा किया है। करटक बोला। 'भाई, मैं यह मानता हूँ कि यह सारा दोष मेरा ही है। इसमें मालिक का कोई दोष नहीं है। दमनक ने कहा-पंचतंत्र की कहानिया
'लेकिन अब सोचने की बात तो यह है कि इस स्थिति में हम दोनों को क्या करना चाहिए।" करटक ने कहा।
"करटक भाई, तुम चिंता मत करो, ऐसे अवसर पर भी मेरी बृद्धि काम करेगी। इसी बुद्धि ने बैल को शेर तक पहुँचाया था, अब यही शेर से बैल को अलग कर देगी। लोग कहते हैं कि धनुष से निकला तीर एक ही व्यक्ति को मारता है और नहीं भी मारता, लेकिन बुद्धिमान की बुद्धि राजा सहित सारे राज्य को नष्ट कर देती है। सो मैं अपनी नई चाल से इन दोनों को एक-दूसरे से अलगकर दूंगा।"
" भाई दमनक! एक बात याद रखना, यदि तुम्हारी इस चाल को शेर और बैल दोनों में से कोई जान गया तो समझ लो हमारी जान की खैर नहीं।"
"ऐसी बात मत कहो। मुसीबत के समय तो बड़े से बड़े लोगों की बुद्धि काम करने लगती है। अब तो हम दोनों ही अकेले पड़ गए हैं, यदि हमने हिम्मत से काम न लिया तो वैसे भी हमारा क्या जीना। याद रखो उद्योगी को ही सदा लक्ष्मी मिलती है, भाग्य का सहारा तो केवल बुजदिल लोग लेते हैं। यत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध न हो तो कोई दोष नहीं। कहा गया है-जो काम तीर से नहीं होता, वह तरकीब से हो जाता है। कौवे ने सोने की लड़ी द्वारा काला सांप मार दिया। "
"वह कैसे भैया?" "मैं तुम्हें सुनाता हूँ-
कोई टिप्पणी नहीं: