पंचतंत्र की कहानियाँ
आ बैल मुझे मार
दमनक ने जैसे ही बैल को देखा तो वह दिल ही दिल में खुश हो उठा। यह हमारी बात समझ गया कि बैल की हुंकार से ही शेर डर गया है। अब उसे शेर को खुश करने और अपनी खोई इज्जत प्राप्त करने का एक सुंदर अवसर मिला था।
बैल से मिलकर वह वापस अपने मालिक के पास जाने लगा तो सोच रहा था कि कि विद्वानों ने ठीक ही कहा है- राजा मंत्रियों के कहने पर उस समय तक दयालु और सच्चाई के मार्ग पर नहीं चलता, जब तक वह स्वयं दुःख न उठा ले दु:ख और मुसीबत में फंसकर ही राजा को वास्ताविक जीवन का पता चलता है। इसलिए मंत्री लोग दिल से चाहते हैं कि राजा भी कभी-न-कभी दुख झेले।
यही सोचता हुआ दमनक वापस चल दिया। शेर भी दूर से उसे आते देख रहा था। उसने पहले से ही अपने को आने वाले खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार कर रखा था। दमनक को अकेले आते देखकर वह समझ गया कि डर वाली कोई बात नहीं, उसने दमनक से पूछा-
"मित्र, तुम उस भयंकर जानवर से मिल कर आए हो ?" "जी हो।"
'क्या यह सच है। " शेर ने अश्चर्य से पूछा- "क्या वह बहुत शक्तिशाली हैं। मुझे सब कुछ सच सच बताओ कि वह कौन है। कहाँ से आया है।" "महाराज, यदि आप कहें तो मैं उस भयंकर जानवर को भी सेवा में लगा दूँ।" दमनक हंस कर बोला।
पिंगलक ने एक ठंड़ी सांस भरते हुए कहा- "क्या वह हो सकता है ... 1 ? " 'महाराज, बुद्धि से इस संसार में क्या नहीं हो सकता ? किसी ने सत्य कहा " है कि बुद्धि द्वारा जो काम बन सकता है वह हथियारों से नहीं बनता।"
"यदि ऐसा तुम कर दिखाओगे दमनक, तो मुझे बहुत खुशी होगी, वैसे मैं तुम्हारी बातों से बहुत प्रभावशाली हुआ हूँ। मैं आज से तुम्हें अपना मंत्री बनाता हूँ। आज से मेरे सारे काम तुम ही देखा करोगे।"
"धन्यवाद महाराज, मैं आपको वचन देता हूँ कि आपकी सेवा सच्चे दिल मैं करूंगा। आप मुझे आर्शीवाद दें कि मैं उस भयंकर जानवर को आपके रास्ते से हटा सकूं।
" जाओ दमनक जाओ, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।" दमनक अपने पुराने मालिक और अपने खोए हुए पद को पाकर अत्यंत खुश हो गया था। वह वहाँ से सीधा उस बैल के पास पहुँचा। जाते ही उसने बैल से कहा-
'ओ दुष्ट बैल। इधर आ, मेरा मालिक पिंगलक तुझे बुला रहा है।' उसकी बात सुनते ही बैल ने आश्चर्य से पूछा, 'बंधु, पिंगलक कौन है ?'
" अरे, क्या तू पिंगलक को नहीं जानता? कमाल है तुझे इस जंगल में रहकर भी नहीं पता कि पिंगलक नाम का शेर इस जंगल का राजा है। आज तक तू उसे प्रणाम करने भी नहीं गया। यही कारण है कि महाराज ने तुझे अपने दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया है।"
बैल उसके मुँह से शेर की बात सुनकर डर सा गया, किन्तु फिर भी अपने को संभालता हुआ बोला- "देखो मित्र, यदि तुम मुझे अपने मालिक के पास ले जाना चाहते हो, तो मेरी रक्षा की सारी जिम्मेदारी तुम पर ही होगी।"
"हाँ हाँ, मित्र तुम ठीक ही कहते हो। मेरी नीति यही है, क्योंकि धरती सागर और पहाड़ का अंत पाया जा सकता है किन्तु राजा के दिल का भेंद आज तक किसी ने नहीं पाया। इसीलिए तुम उस समय तक यहीं पर ठहरो जब तक मैं अपने मालिक से सारी बात करके वापस न आ जाऊँ।"
"ठीक है मित्र, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।" बैल ने हंसकर उत्तर दिया। दमनक बैल को वहीं छोड़कर खुशी से छलांगे लगाता हुआ फिर शेर के पास पहुँचा। शेर भी अपने मंत्री को आते देखकर खुश था। उसने पूछा- "कहो मंत्री! क्या खबर लाए हो ?"
"महाराज! वह एक बैल है, मगर कोई साधारण बैल नहीं है। वह तो
भगवान शंकर का वाहन बैल है, स्वयं शंकर जी ने उसे इस जंगल में घास खाने
के लिए भेजा है।"
पिंगलक ने हैरानी से कहा- अब मुझे ठीक-ठीक बात पता चल गई कि यह बैल इस जंगल में क्यों आया है। इसके पास देवताओं की शक्ति है। अब यहाँ के जीव-जन्तु उसके सामने आजादी से नहीं घूम सकते...। मगर मंत्री, तुमने उससे क्या कहा ?"
"मैंने उसे कहा, यह जंगल चंडी के वाहन, मेरे राजा पिंगलक नामक शेर के अधिकार में है। इसीलिए आप हमारे मेहमान हैं। मेहमान की सेवा करना हमारा सर्वप्रथम धर्म है। इसलिए मैं आपके राजा की ओर से आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप हमारे साथ रहें।
"वह क्या बोला ?"
"महाराज। वह मेरे साथ आने को तैयार हो गया। अब तो मैं केवल आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कहो तो उसे आपके पास ले आऊं ?" "दमनक, तुमने तो हमारे दिल की बात कह दी। मैं बहुत खुश हूँ। जाओं तुम जल्दी से उसे मेरे पास ले आओ। मुझे तुम पर गर्व है। जैसे शक्तिशाली
खम्बों पर भवन खड़ा किया जाता है, वैसे ही बुद्धिमान मंत्री के कंधों पर राज्य का
बोझ डाला जाता है। " दमनक, अपने राजा के मुँह से आपनी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ। और फिर वहाँ से वापस उस बैल की ओर चल दिया। बैल शेर का निमंत्रण पाकर बहुत खुश हुआ और बोला- जैसे सर्दी में आग
अमृत, वैसे अपने मित्र का दर्शन अमृत है। दूध का भोजन खीर अमृत और राज
सम्मान भी ऐसे ही अमृत है। हम अपने मित्र सिंह के चलेंगे। दमनक ने बैल से कहा- "देखो मित्र ! मैं तुम्हें वहाँ पर ले जा रहा हूँ। मैंने ही शेर से तुम्हारी मित्रता करवाई है, इसीलिए तुम्हें मुझे यह वचन देना होगा कि तुम सदा मेरे मित्र बने रहोगे। जो प्राणी गर्व के कारण उत्तम, माध्यम और अधम, इन तीनों प्रकार के मनुष्यों का यथा योग्य सत्कार नहीं करता वह राजा से आदर भाकर भी दलित के समान दुष्ट हो जाता है।"
"यह कैसे भाई ?" बैल ने पूछा।
"सुनो-
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